Delhi :- मधुमेह का जोखिम कम करने को स्कूलों में लगेंगे शुगर बोर्ड, बच्चे जानेंगे क्या खाना-पीना है … और क्या नहीं

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से संबद्ध स्कूलों में अब जल्द ही शुगर बोर्ड बनेंगे। सीबीएसई ने बच्चों में बढ़ रही मधुमेह बीमारी पर चिंता जताते हुए शुगर बोर्ड स्थापित करने के निर्देश दिए हैं। सीबीएसई ने कहा है कि इन पर छात्रों को अत्यधिक चीनी सेवन, जंक फूड (पिज्जा, बर्गर, मोमोज), कोल्ड ड्रिंक्स जैसे खाद्य और पेय पदार्थों से जुड़े जोखिम की जानकारी प्रदर्शित करने के लिए कहा है।
स्कूलों में शुगर बोर्ड के माध्यम से सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित की जाएंगी। वहीं, विशेषज्ञ बच्चों को चीनी के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करेंगे। सीबीएसई की ओर से इस संबंध में संबद्ध स्कूल प्रिंसिपल को निर्देश जारी किए हैं। सीबीएसई ने कहा है कि बीते एक दशक में बच्चों में टाइप-2 मधुमेह में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
पहले यह बीमारी मुख्य रूप से व्यस्कों में देखी जाती थी, लेकिन अब इसका शिकार बच्चे भी हो रहे हैं। सीबीएसई के अनुसार यह खतरनाक प्रवृत्ति काफी हद तक चीनी के अधिक सेवन के कारण है, जो अक्सर स्कूल के वातावरण में मीठे स्नैक्स पेय पदार्थों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की आसानी से उपलब्धता के कारण होती है।
चीनी का अत्यधिक सेवन ना केवल मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है, बल्कि मोटापा, दंत समस्याओं और अन्य विकारों में भी योगदान देता है। जो कि बच्चों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित करता है। ऐसे में बोर्ड ने स्कूलों को कहा है कि वह अपने यहां शुगर बोर्ड स्थापित करें। जहां छात्रों को अत्यधिक चीनी सेवन के जोखिमों के बारे में शिक्षित करने के लिए जानकारी प्रदर्शित की जाए। इन बोर्डों में आवश्यक जानकारी प्रदान की जानी चाहिए, जिसमें अनुशंसित दैनिक चीनी सेवन, आम तौर पर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों स्वस्थ आहार विकल्प शामिल हैं।
यह बोर्ड छात्रों को सूचित खाद्य विकल्पों के बारे में शिक्षित करेगा। बोर्ड ने इनकी संक्षिप्त रिपोर्ट और तस्वीरें उपलब्ध कराए गए लिंक पर अपलोड करने को कहा है। बोर्ड ने कहा है कि स्कूल इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करें ताकि एक स्वस्थ स्कूली वातावरण को बढ़ावा दिया जा सके। बोर्ड के अनुसार अध्ययनों से पता चलता है कि 4 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए दैनिक कैलोरी सेवन में चीनी का हिस्सा 13 फीसदी है, 11 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 15 फीसदी है, जबकि पांच फीसदी ही चीनी का सेवन होना चाहिए।
